मरीजों को नहीं मिलता उचित इलाज
-सीएम और मंत्री के दौरे के बाद भी हालात जस के तस
-मजबूरन निजी अस्पताल की शरण लेते हैं मरीज
भोपाल। राजधानी के हाल किसी से छिपे नहीं हैं। यहां आए दिन कोई न कोई लापरवाही सामने आती रहती है। चाहे वह हमीदिया अस्पताल हो या फिर जेपी अस्पताल हो। इनके अलावा राजधानी की अन्य अस्पतालों में भी अव्यवस्था के नजारे आए दिन सामने आते रहते हैं और मरीजों को इन व्यवस्थाओं से दो-चार होना पड़ता है। मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पाने से दर-दर भटकते हैं। हमीदिया अस्पताल में तो सीएम और स्वास्थ्य मंत्री के दौरे के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। इधर, जयप्रकाश अस्पताल में भी आए दिन लापरवाही के मामले सामने आते हैं। वहीं हाल ही में यहां सरकारी अस्पतालों में आॅक्सीजन सिलेंडर की लापरवाही उजागर हुई है। सुल्तानिया अस्पताल में सिलेंडर खाली मिले थे तो कमला नेहरू में एक साल से इन सिलेंडरों की जांच तक नहीं की गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार राजधानी की अस्पतालों में लगाम कसने और मरीजों को सुविधाएं मुहैया कराने में नाकाम है। इन अस्पतालों में मरीजों की जान से खिलवाड़ करना निरंतर जारी है।
हादसों से भी सबक नहीं लेता अस्पताल प्रबंधन
मप्र सहित देश के सरकारी अस्पतालों में आए दिन लापरवाही के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन राजधानी के अस्पताल प्रबंधन और सरकार इन हादसों के बाद भी कोई सबक नहीं लेती है और हालात जस के तस रहते हैं। हाल ही में उप्र के गोरखपुर के अस्पताल में सिलेंडर सप्लाई न होने से तकरीबन 65 बच्चों की मौत हो गई थी। इसके बावजूद भी राजधानी भोपाल के अस्पतालों में कोई सुधार नहीं देखा गया। इतना ही नहीं प्रदेश में इंदौर के एमवाय अस्पताल में भी आॅक्सीजन खत्म होने के चलते 17 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था, लेकिन राजधानी के अस्पतालों की व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं आया। इधर, सुल्तानिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. करण पीपरे का कहना है कि हमारे यहां आॅक्सीजन सप्लाई व्यवस्थित रखने के लिए एक टीम तैनात है। साथ ही हमारे पास इमरजेंसी के लिए अतिरिक्त सिलेंडर भी रहते हैं। यहां कोई गड़बड़ी की आशंका नहीं हो रहती है।
-छह माह से नहीं हुई सिलेंडर की जांच
कमला नेहरू अस्पताल में मरीजों को लिक्विड आॅक्सीजन सप्लाई के लिए प्लांट है। इमरजेंसी के लिए इसमें सात सिलेंडर भी रखे हैं। वहां मौजूद एक कर्मचारी ने बताया कि हर माह इन सिलेंडरों की जांच कर उनकी तारीख डाली जाती है। जबकि एक सिलेंडर पर नवंबर 2016 की तारीख लिखी हुई थी। इस पर उस कर्मचारी ने बताया कि हो सकता है कि इस सिलेंडर पर तारीख लिखना भूल गए हों।
-सीएम और मंत्री के दौरे के बाद भी हालात जस के तस
-मजबूरन निजी अस्पताल की शरण लेते हैं मरीज
भोपाल। राजधानी के हाल किसी से छिपे नहीं हैं। यहां आए दिन कोई न कोई लापरवाही सामने आती रहती है। चाहे वह हमीदिया अस्पताल हो या फिर जेपी अस्पताल हो। इनके अलावा राजधानी की अन्य अस्पतालों में भी अव्यवस्था के नजारे आए दिन सामने आते रहते हैं और मरीजों को इन व्यवस्थाओं से दो-चार होना पड़ता है। मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पाने से दर-दर भटकते हैं। हमीदिया अस्पताल में तो सीएम और स्वास्थ्य मंत्री के दौरे के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। इधर, जयप्रकाश अस्पताल में भी आए दिन लापरवाही के मामले सामने आते हैं। वहीं हाल ही में यहां सरकारी अस्पतालों में आॅक्सीजन सिलेंडर की लापरवाही उजागर हुई है। सुल्तानिया अस्पताल में सिलेंडर खाली मिले थे तो कमला नेहरू में एक साल से इन सिलेंडरों की जांच तक नहीं की गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार राजधानी की अस्पतालों में लगाम कसने और मरीजों को सुविधाएं मुहैया कराने में नाकाम है। इन अस्पतालों में मरीजों की जान से खिलवाड़ करना निरंतर जारी है।
हादसों से भी सबक नहीं लेता अस्पताल प्रबंधन
मप्र सहित देश के सरकारी अस्पतालों में आए दिन लापरवाही के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन राजधानी के अस्पताल प्रबंधन और सरकार इन हादसों के बाद भी कोई सबक नहीं लेती है और हालात जस के तस रहते हैं। हाल ही में उप्र के गोरखपुर के अस्पताल में सिलेंडर सप्लाई न होने से तकरीबन 65 बच्चों की मौत हो गई थी। इसके बावजूद भी राजधानी भोपाल के अस्पतालों में कोई सुधार नहीं देखा गया। इतना ही नहीं प्रदेश में इंदौर के एमवाय अस्पताल में भी आॅक्सीजन खत्म होने के चलते 17 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था, लेकिन राजधानी के अस्पतालों की व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं आया। इधर, सुल्तानिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. करण पीपरे का कहना है कि हमारे यहां आॅक्सीजन सप्लाई व्यवस्थित रखने के लिए एक टीम तैनात है। साथ ही हमारे पास इमरजेंसी के लिए अतिरिक्त सिलेंडर भी रहते हैं। यहां कोई गड़बड़ी की आशंका नहीं हो रहती है।
-छह माह से नहीं हुई सिलेंडर की जांच
कमला नेहरू अस्पताल में मरीजों को लिक्विड आॅक्सीजन सप्लाई के लिए प्लांट है। इमरजेंसी के लिए इसमें सात सिलेंडर भी रखे हैं। वहां मौजूद एक कर्मचारी ने बताया कि हर माह इन सिलेंडरों की जांच कर उनकी तारीख डाली जाती है। जबकि एक सिलेंडर पर नवंबर 2016 की तारीख लिखी हुई थी। इस पर उस कर्मचारी ने बताया कि हो सकता है कि इस सिलेंडर पर तारीख लिखना भूल गए हों।
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