1453971' type='text/javascript' raj: श्री गुरूशरण महाराज (पण्डोखर सरकार) वास्तव में त्रिकालदर्शी युवा संत हैं ः मुकेश गुप्ता

Sunday, June 28, 2009

श्री गुरूशरण महाराज (पण्डोखर सरकार) वास्तव में त्रिकालदर्शी युवा संत हैं ः मुकेश गुप्ता




भोपाल। यह भला कैसे संभव हो सकता है कि कोई दस-ग्यारह वर्ष की कच्ची उम्र का सामान्य बालक बिना किसी यांत्रिक जांच किये, बिना कोई प्रशिक्षण प्राप्त किये और किसी भी प्रकार का परिचय अथवा व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त किये बिना ही किसी की भी बीमारी या स्वास्थ्य से संबंधित सटीक जानकारी दे दे? किसी दंपती के विवाह के पच्चीस, तीस या चालीस वर्ष तक कोई संतान उत्पन्न न हो और चिकित्सा विज्ञानी भी उसे संतोनोत्पत्ति के लिये अयोग्य घोषित कर दें, लेकिन पूरी तरह अनजान व अनभिज्ञ वह बालक कहे कि संतान होगी और अमुक तारीख या अमुक सन् में होगी तो इसे सामान्यजन क्या कहेंगे? इतना ही नहीं बालक के कथनानुसार संतानोत्पत्ति के लिए अयोग्य ठहराये गये ऐसे ही अनेक दम्पत्तियों को संतान सुख प्राप्त हो जाये तो इसे क्या कहा जायेगा? रोग गंभीर है और चिकित्सा विशेषज्ञ समझ नहीं पा रहे हैं, लेकिन लक्षणानुसार इलाज कर रहे हों और रोगी को स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पा रहा है।

ऐसे रोगी से प्रथम मुलाकात में ही अबोध बालक कहे कि आज से लाभ होगा और अमुक समय में पूर्ण स्वस्थ्य हो जायेंगे। बालक के कथनानुसार रोगी पूर्ण स्वस्थ्य हो जाये तो इसे चिकित्सा विज्ञान किस रूप में स्वीकार करेगा ? व्यक्ति कई वर्ष से लापता है, जिसका कोई अता-पता किसी को भी नहीं मालूम है और न ही पुलिस तंत्र लापता व्यक्ति का सुराग लगा पा रहा हो। ऐसे में उक्त अजनवी बालक कहे कि लापता व्यक्ति का अमुक नाम है, अमुक समय व स्थिति में घर से गया अथवा लापता हुआ है, वह सुरक्षित है और फलां समय तक सुराग मिलेगा अथवा स्वत: घर आ जायेगा। यदि ऐसा ही भविष्य में घटित हो जाये, लापता का मिलन हो जाये तो इसे हम या समाज क्या संज्ञा देगा।

चोरी, डकैती या हत्या हो गई है और अपराधी शातिर है, अनजान है जिसका सूत्र कोई तंत्र पाने में अक्षम है, लेकिन पीडित पक्ष या तंत्र अनजान व मासूम बालक के पास जाये और बालक स्वत: परत दर परत घटना के विषय में जानकारी देकर अपराधी को बेनकाब कर दे तो क्या विश्वास किया जा सकता है ? दूर देश में बैठे व्यक्ति से मिलने या उसकी गतिविधि की सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें या आपको उस तक पहुंचना अनिवार्य होगा, चाहे सडक मार्ग या रेलमार्ग से जाना पडे अथवा वायुमार्ग से पहुंंचना पडे अर्थात कुछ घंटे तो दूरस्थ व्यक्ति तक पहुंचने में निश्चित ही गंवाना पडेंगे, लेकिन यदि बिना समय जाया किये पलक झपकते ही किशोरवय बालक विदेश में रहने वाले व्यक्ति का सच यह बयान कर दें और उसके बताये अनुसार संचार माध्यमों से हम पुष्टि कर लें तो इसे क्या कहेंगे ? घोर नास्तिक इंसान को भी यदि दुनिया का कोई व्यक्ति या तंत्र आस्तिक न बना सके और उसे चंद मिनटों में आस्तिक बनाकर अपने कदमों में यदि कोई नवयुवक झुका ले तो इसे कौन सा करिश्मा कहेंगे ? मर्द घर व समाज की नजर में चरित्रवान है और वह पत्नी को देवी स्वरूपा मानता है अथवा औरत पति को परमेश्वर मान समाज की नजर में सावित्री के समान पतिव्रता है। ऐसे स्त्री या पुरूष के सामने आते ही उनसे पूरी तरह अनभिज्ञ यह युवक सरेआम यह बता दे कि उनके कहां-कहां अवैध संबंध है और किसके साथ, किस जगह और किस समय बेआवरू हुए हैं तो इसे आप-हम किस रूप में स्वीकार करेंगे ? हजारों इंसानों के बीच से यदि कोई अनजान युवक आपको आपके नाम, पिता-माता या दादा-दादी आदि संबंधियों के नाम सहित पुकारकर बुला ले। इतना ही नहीं आपके मकान नं., फोन व मोबाइल नं. बताकर भी भीड से बुला ले तो आप, हम, समाज या आधुनिक विज्ञान इसे क्या कहेगा ?

उक्त अतिश्योक्तिपूर्ण समस्त प्रकार के सवालों का यदि जवाब चाहिए है और ऐसे नौजवान से यदि साक्षात्कार करना कोई भी चाहता है तो यह बहुत ही आसान व सरल है। ऐसे अनंत प्रश्नों, अनेक जिज्ञासाओं व शंकाओं का समाधान पाने के लिएए किसी शुल्क, प्रसाद या सिफारिस के कोई भी सामान्यजन सरलता व सहजता से इस करिश्माई व्यक्तित्व से साक्षात्कार कर सकता है। वह दस-बारह वर्ष का बालक किशोर या नौजवान कोई और नहीं वह स्वयं गुरूशरण ही हैं। गुरूशरण शर्मा से अनंत श्री विभूषित, पूगयपाद और त्रिकालदर्शी संत जैसे विशेषणों को धारण करने वाले स्वयं गुरूशरण महाराज है।
मध्यप्रदेश रागय के बुंदेलखण्ड स्थित दतिया जिलातंर्गत आने वाली भाण्डेर तहसील के छोटे से गगाम पण्डोखर को धाम बनाकर विश्व मानचित्र पर स्थापित करने जा रहे श्री गुरूशरण महाराज स्वयं त्रिकालदर्शी हैं। 15 अप्रैल 1983 को भिण्ड जिले के छोटे से गगाम बरहा में श्रीमती ठाकुर बेटी की कोख से अवतरित दिव्य बालक के पिता पं. श्री अशोक कुमार शर्मा हैं। पं. श्री अशोक शर्मा के पूर्वज क्षेत्र के संपंन किसान हुआ करते थे, जिन पर उनके कुलदेव श्री हाथीवान महाराज की अनन्य कृपा सदैव ही पीढी दर पीढी रही है। परिस्थितिजन्य कारणों से चंद माह की उम्र के शिशुरूप गुरूशरण को लेकर उनके पिता दतिया जिले के इस छोटे से गगाम पण्डोखर में आकर बस गये। यहां स्थित प्राचीन श्री बालाजी मंदिर के समकक्ष विराजमान बालरूप श्री हनुमंतलाल जी महाराज की प्रतिमा द्वापरयुगीन प्राचीन व दिव्य प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास काल में इस प्रतिमा की स्थापना की थी। घोर जंगल में विराजमान हनुमान जी सरकार के इस मंदिर के कारण कालांतर में यहां ग्राम आबाद हुआ और इसका नाम समयानुसार बनते-बिगडते आज पण्डोखर पड गया। पण्डोखर ग्राम में ही पले बडे एवं हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त किये बालक गुरूशरण बचपन से ही चतुर, चालक व कुशागग बुदि्घ के थे।

बावजूद इसके इनका पढाई लिखाई में कम और हनुमत भक्ति व परिवार के संस्कार वश पांडित्यकर्म में कहीं गयादा मन रमता था। श्री गुरूशरण बचपन से ही ग्रामवासियों के लाडले और रहस्यमयी अबूझ पहेली थे। बचपन से ही इनकी वाणी फलीभूत होती रही है, अर्थात जिससे जो कह देते या जैसा बता देते थे वैसा ही सत्य हो जाता था। इनके बचपन से जुडी अनेक रहस्यमयी व रोमांचकारी घटनायें हैं। किशोरावस्था प्राप्त करते-करते इन्हें खूब धनवान बनने व पैसा कमाने का शौक हुआ तो यह परिवारजनों को बरगला कर अठारह किलोमीटर दूर स्थित भाण्डेर शहर आया करते थे। यहां के एक प्रतिष्ठित डाक्टर के यहां इनका यदा-कदा जाना हुआ तो बालक गुरूशरण ने इनके यहां आने वाले चंद मरीजों को देखना और इन्हें दवा बताना आरंभ कर दिया। बालक गुरूशरण की मनमोहित कर देने वाली मुस्कान या स्वभाव कहें अथवा उनकी बताई दवा का असर कहा जाये। डाक्टर के यहां मरीजों की भारी भीड पडने लगी और डाक्टर भी गुरूशरण से प्रभावित हो उनके भरोसे ही अस्पताल छोड स्वयं नदारत रहने लगे। गुरूशरण भी डाक्टर की अनुपस्थिति का लाभ उठा बडे चाव से स्टेथिस्कोप कान में लगाकर पारंगत चिकित्सक की तरह बनावटी जांच कर पर्ची पर कुछ भी दवा के नाम पर लिखकर देने लगे। उस पर दवा बिक्रेता भी चांदी काटने लगा और लिखावट समझे बिना ही कोई भी सामान्य दवा विक्रेता कोई भी ऐसी दवा देते रहे और मरीज को दवा रामबाण साबित होती रही। गुरूशरण उस उम्र में भी दो, तीन, पांच सौ रूपये प्रतिदिन जेब में डालकर शाम तक खुशी-खुशी घर लौट आया करते थे।
गुरूशरण बचपन में कहीं अपनी करिश्माई शक्ति से पैसा बना देते, कभी शिक्षक को कुर्सी से ही चिपका कर उनमें अज्ञात भय व विस्मय पैदा कर देते, कभी बैंक के पैसे रोड पर अपने सहपाठियों के बीच वजीफा के रूप में बांटकर, पुन: यथास्थान लौटा दिया करते। पण्डोखर थाने में घटित गंभीर अपराध के वास्तविक अपराधी की जानकारी लेने में जब पुलिस नाकाम रहती तो वह भी इनका सहारा लेते। इसके साथ ही गुरूशरण महाराज का जीवन अनेक झंझावतों के साथ ही कई दिव्य दैवीय शक्तियों से साक्षात्कार करते हुए सदा ही रहस्रूमयी रहा है। समयानुसार जब किशोरावस्था में घर के बाहर दूर जाना हुआ तो वहां भी अपनी चमत्कारी दैवीय शक्तियों से साक्षात्कार कराने लगे। बारह वर्ष की उम्र में ही हनुमान जी सरकार का नामकरण पण्डोखर सरकार करने वाले श्री गुरूशरण सदा ही महत्वाकांक्षी रहे हैं।
बचपन से ही यश-वैभव और कीर्ति अर्जित करने की इगछा रखने वाले श्री गुरूशरण शर्मा अब अनंत श्री गुरूशरण महाराज के नाम से देश दुनिया में ख्याति अर्जित कर रहे हैं। सागर मध्यप्रदेश में युवावस्था के दौरान किये प्रवास और यहां प्राप्त प्रेम-स्नेह, सम्मान के साथ ही शिष्य सत्संग ने इन्हें इतना प्रभावित किया कि यह कई-कई माह यहां रमे रहते। केवल मात्र अमावस्या के दिन भक्तों की पेशी अर्जी हनुमान जी के समक्ष लगाने पण्डोखर जाया करते और पुन: सागर वापस आकर अपने से कहीं बहुत बडी उम्र के चंद शिष्यों के साथ दु:खी पीडितजनों की विभिन्न समस्याओं का समामाधान किया करते थे। सागर नगर से ही पण्डोखर सरकार के दरबार का स्वरूप निखरा और सार्वजनिक दरबार कार्यक्रमों की श्रंखला जो शुरू हुई तो वह अनवरत जारी है।
श्री गुरूशरण की वाणी फलीभूत होती है और किंचित संदेह नहीं कि वह वास्तव में त्रिकालदर्शी व चतुर्युणी संत हैं। सागर में रहते हुए ही उनका प्रणय संबंध माता-पिता ने उरई के समीप स्थित ग्राम में निश्चित कर दिया। विवाह उपरांत पांच वर्ष तक का कठोर ब्राम्हचर्य व्रत धारण करने की शर्त पर विवाह रचाने वाले श्री गुरूशरण महाराज की दिव्य जीवन संगिनी ने भी उनके इस व्रत को एक अनुष्ठान के रूप में संकल्पबद्घ होकर निष्ठापूर्वक पालन किया जो नवयुवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
छब्बीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने कुल, गुरू और माता-पिता का नाम अमर कर देने वाले युवागृहस्थ संत ने अपने शिष्यों को भी समाज में गौरव व सम्मान प्रदान किया है, इसे कोई नकारा नहीं सकता है। स्वार्थ एवं कुटिल भावना लेकर आने वाले तथा भौतिक सुखों को प्राप्त करने की लालसा लेकर आने वालों को भी उन्हाेंने अपनाने से गुरेज नहीं किया। इतना ही नहीं चरित्र से गिर चुके स्त्री-पुरूषों को भी श्री गुरूशरण महाराज ने अपनाकर उन्हें भाई व बहन जैसा नाम सम्मान देकर योग्य पथ प्रदान किया है। ऐसे कुछेक मामलों में स्वयं की चरित्र हत्या करने वालों को भी अभयदान देकर श्री गुरूशरण महाराज ने अपनी गुरूता का प्रदर्शन कर समाज को चकित कर दिया।

जीवन में जटिल चुनौतियों को सहज व सरल भाव से स्वीकार कर उनका सार्वजनिक व सटीक जवाब देने वाले श्री गुरूशरण महाराज को लोकतंत्र क नामी रहनुमाओं ने झुकाने की कोशिश की, लेकिन सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं यह भी पूगयवाद ने साबित कर दिखाया। श्री गुरूशरण महाराज के आशीर्वाद व दिव्य मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि आज हजाराें संतानहीन माताओं की गोद में लाल मचल रहे हैं। हजारों भूत-प्रेतबाधा और असाध्य रोगों से पीडित जन विभिन्न व्याधियों से मुक्ति प्राप्त कर स्वस्थ्य व सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सांसारिक कष्टों से दु:खी या विचलित होकर अपना जीवन समाप्त करने जा रहे सैकडों इंसान सद्गुरू शरण में आकर नवजीवन प्राप्त कर चुके हैं। दु:खी पीडित मानवता का विभिन्न दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाले पूगयवाद अनंतश्री विभूषित गुरूशरण महाराज के सत्ताइसवें जन्मोत्सव पर अनंत शुभकामनायें एवं संसार के समस्त गुरूभक्तों के चरणों में कोटि्-कोटि् प्रणाम्।

3 comments:

  1. achhi jankari k liye dhanaywad..........

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  2. यह सब भारत भूमि के प्रताप से ही संभव है ............
    प्रणाम है मेरा भी

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  3. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया करना चाहती हूँ कि आप मेरे ब्लॉग पर आए और टिपण्णी देने के लिए धन्यवाद! मेरे दूसरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने और काफी जानकारी भी प्राप्त हुई!

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