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Saturday, April 02, 2011

लाखों खर्च, कागजों पर चल रहा मलेरिया रोकथाम अभियान

सिवनी (एमपी मिरर)। जिले में मलेरिया रोकथाम अभियान सिर्फ कागजों में चलाया जा रहा है, हर वर्ष लाखों रुपये मलेरिया के जनक मच्छरों के नष्टीकरण के लिये छिड़काव किये जाने वाले कीटनाशक दवा के बदले जिला मलेरिया और नपा ने मिलकर सिर्फ सफेद पावडर ही नालियों में बहाया है। इसके अलावा विभाग की मनमानी तो देखे मलेरिया रथ के नाम से गांव-गांव चलाये जा रहे वाहन की भी र्फर्जी एंट्री कर दी गई है। कुल मिलाकर स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर जिला चिकित्सालय में सारी की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गई है। जिनमें आवंटन तो लाखों, करो.डो रुपये का होता है पर फायदा नाममात्र का नहीं है। मलेरिया रोग की रोकथाम के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि मुख्यालय में ही दवा का छिड़काव, मच्छरदानी तक नहीं बांटी गई इसे अलावा घर-घर जाकर लोगों की रक्त पट्टिकाएं तक नहीं ली गई।

आलम यह है कि मलेरिया रोग का खतरा जस का तस बना हुआ है। गंदगी से बजबजाती नालियों की साफ-सफाई एवं दवा छिड़काव के लिये गत माह स्वास्थ्य सेवाएं भोपाल से जिला अस्पताल को निर्देश दिये गये है कि जिला अस्पताल, नगरपालिका को कीटनाशक छिड़काव के आवश्यकताएं पूर्ण कराने को कहा गया था, पर इसकों भी नजर अंदाज कर दिया गया। मलेरिया रोकथाम के लिये चलाये गये अभियान को सफल बताते हुये विभागीय अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2010 के अगस्त माह तक, कुरई के 73 गांव, बरघाट 29, केवलारी 32, घंसौर 48, धनौरा 22, गोपालगंज 24, छपारा 39 और लखनादौन के 29 गांव में लाखों रुपए दवा का छिड़काव किया गया है, मलेरिया को रोकने के लिये प्राथमिकता से काम किया जा रहा है, इतना जरुर है कि इस वर्ष मच्छरदानी नहीं मिल पाई है। स्वास्थ्य के नाम पर लाखों रुपए का बजट बताया जा रहा है लेकिन मलेरिया उन्मूलन के नाम पर सब कुछ जीरों है। शहर में मच्छरों की ब.ढती तादाद को कम करने में मलेरिया विभाग को केवल इसलिए नाकामी हाथ लग रही है क्योंकि उनके पास पर्याप्त कर्मचारी ही नहीं है। इसके अलावा शहर में साफ-सफाई रखने के लिए जिम्मेदार नगरपालिका का भी सक्रिय सहयोग नहीं मिलने से मलेरिया उन्मूलन कार्य ठप्प हो गया है।
मलेरिया उन्मूलन एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है और मलेरिया के लिए हर साल लाखों रुपऐ का बजट निर्धारित किया जाता है। बीच में ही यह बजट यहां खर्च हो रहा है।
इसका पता तक नहीं चलता है। जिला मलेरिया कार्यालय को मच्छश्रों को भी नष्ट करना और दवा छि.डकाव, लार्वा सर्वे कार्य सहित सैम्पल जांच भी करना होता है। शहर के अस्पतालों में मलेरिया जांच के लिए बैठाए गए कर्मचारी मरीजों की जांच इस तरह से कर रहे हैं कि किसी की सिलाइड होती है अैर रजिस्टर में नंबर किसी का च.ढाया जा रहा है। इससे रोगियों की जो रिपोर्ट मिलती है उनसे उनकी बीमारी का सही इलाज नहीं हो पाता। अस्पतालों में मलेरिया की जांच विश्वसनीय नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि भीड़भाड़ में सिलाइड लेने वाला कर्मचारी सही जांच नहीं कर पा रहे हैं। शहर में जगह-जगह मलवा पड़ा हुआ है। झुग्गी बस्ती से लेकर कई संभ्रात कॉलोनियों में कचरे के ढेर लगे होने और गढ्ढों नालों में गंदा पानी भरा होने से उनमें मच्छर ब.ढते जा रहे हैं। मच्छरों को मारने के लिए नगरपालिका की फॉगिंग मशीन व्यर्थ साबित हो रही है। सर्वाधिक मच्छर पिछ.डी बस्तियों में है जहां नियमित रुप से प*ॉगिंग मशीन से धुंआ छुड़वाना जरुरी है।

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