सुरेंद्र त्रिपाठी
जिला प्रशासन बना मूकदर्शक
उमरिया (एमपी मिरर)। जिले के मानपुर जनपद अन्तर्गत ग्राम पंचायत कोड़ार के ग्राम खरहाडांड में एमआईटी छायन के नाम से बन रहे स्टाप डैम की लागत 23 लाख 94 हजार रुपये है। इसको बनाने वाली निर्माण एजेन्सी का नाम एएससीओ (एफपीआर) है।
निर्माण एजेन्सियां अब अपना नाम सही ढंग से न देकर छोटे रुप में देने का कार्य कर रही हैं ताकि आम जन के समझ में न आ सके और कोई शिकायत करना चाहे तो उसको पता लगाना पड़े कि काम किसका है। यह तो छोटी सी बात है लेकिन बड़ी बात तो यह है कि जहां केन्द्र सरकार के स्पष्ट निर्देश हैं कि रोजगार गारंटी के कार्यों में मशीनों का उपयोग नहीं किया जायेगा, कार्य स्थल पर निर्माण से संबंधित बोर्ड पूरी जानकारी के साथ लगाया जायेगा, प्राथमिक उपचार की व्यवस्था रखी जायेगी, पीने के पानी की व्यवस्था की जायेगी एवं अन्य कई ऐसे निर्देश हैं। मौके पर तो किसी का पालन नहीं होता यहां तक कि मस्टर रजिस्टर तक मौके पर नहीं रहता। विगत एक सप्ताह से लगातार एक जेसीबी मशीन एवं दो डम्पर खरहाडांड में कार्य कर रहे है। जब जिले के जागरुक पत्रकार मौके पर गये तो वहां खुले आम मशीनों से काम होता मिला लेकिन विभाग का कोई जिम्मेदार आदमी नहीं रहा।
उमरिया (एमपी मिरर)। जिले के मानपुर जनपद अन्तर्गत ग्राम पंचायत कोड़ार के ग्राम खरहाडांड में एमआईटी छायन के नाम से बन रहे स्टाप डैम की लागत 23 लाख 94 हजार रुपये है। इसको बनाने वाली निर्माण एजेन्सी का नाम एएससीओ (एफपीआर) है।
निर्माण एजेन्सियां अब अपना नाम सही ढंग से न देकर छोटे रुप में देने का कार्य कर रही हैं ताकि आम जन के समझ में न आ सके और कोई शिकायत करना चाहे तो उसको पता लगाना पड़े कि काम किसका है। यह तो छोटी सी बात है लेकिन बड़ी बात तो यह है कि जहां केन्द्र सरकार के स्पष्ट निर्देश हैं कि रोजगार गारंटी के कार्यों में मशीनों का उपयोग नहीं किया जायेगा, कार्य स्थल पर निर्माण से संबंधित बोर्ड पूरी जानकारी के साथ लगाया जायेगा, प्राथमिक उपचार की व्यवस्था रखी जायेगी, पीने के पानी की व्यवस्था की जायेगी एवं अन्य कई ऐसे निर्देश हैं। मौके पर तो किसी का पालन नहीं होता यहां तक कि मस्टर रजिस्टर तक मौके पर नहीं रहता। विगत एक सप्ताह से लगातार एक जेसीबी मशीन एवं दो डम्पर खरहाडांड में कार्य कर रहे है। जब जिले के जागरुक पत्रकार मौके पर गये तो वहां खुले आम मशीनों से काम होता मिला लेकिन विभाग का कोई जिम्मेदार आदमी नहीं रहा।
डम्पर चालक रति लाल ने बताया कि सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक जेसीबी मशीन चलती है और डम्पर से मिट्टी ले जाकर बंधान के मेढ पर डालते हैं और कुछ मजदूरों से उसको फैलवाया जाता है। वहीं मजदूरों ने बताया कि बंधान की मेढ बनाने के लिये मशीन से पांच फिट गहरा गड्ढा खोदा गया है और वहीं से मिट्टी लाकर भर दिया गया है। बनाये जा रहे बंधान के ओव्हर फ्लो के लिये जेसीबी से खुदाई करवा कर जो मिट्टी निकल रही है उसी से मेढ बांधने का कार्य किया जा रहा है। गौरतलब है कि एमआईटी छायन के नाम से जो कार्य करवाया जा रहा है वह भी छायन में न हो कर ग्राम खरहाडांड में करवाया जा रहा है। कार्य का बोर्ड चौकीदार के लिये बनी झोपड़ी में रखा हुआ है ताकि कोई देखने न पाये और जो जांच कर्ता पहुंचे उसको बताया जा सके कि अभी नहीं लगवा पाये हैं, यहीं रखा है। उमरिया जिले में यह कोई पहला मामला नहीं है जिधर भी देखें उधर जे0सी0बी0 से काम करवा कर बजट का वारा-न्यारा करने का काम धड़ल्ले से चल रहा है। अभी कुछ दिन पूर्व मानपंर जनपद के ही ग्राम धकोदर में जे0सी0बी0 मशीन से स्टाप डैम बनवाया गया है। जबकि उसको ग्राम बल्हौंड़ में बनना था तो वहां सरकारी जमीन न मिलने के कारण धकोदर में बना कर बजट निपटा दिया गया। इसी तरह कार्य का लोकेशन कहीं का दिया जाता है और कार्य कहीं और करवाया जाता है अगर इन निर्माण एजेंसियों की तकनीकी और प्रशासकीय स्वीकृति की जांच कराई जाय तो ऐसे ढेरों मामले मिलेंगें। खास बात तो यह है कि शासन और प्रशासन के हर अंग की मिली भगत से जिले में खुले आम नियम कायदों की धज्जियां उड़ायी जा रही है।
अगर जिले में सन् 1998 से 2003 के पंचवर्षीय की बात करें तो उस समय तत्कालीन कलेक्टर रघुवीर श्रीवास्तव से सत्ता के विकेन्द्रीकरण की नीति के तहत जिले में 803 तालाब बनवाया जो वर्तमान सत्ता में काबिज नेताओं को रास नहीं आया। उसी तारतम्य में जिले के ही जिला पंचायत सदस्य ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर जांच करवाने का निर्देश करवाया जिसके लिये टीम गठित की गई और जांच में क्या हुआ किसी को कुछ भी पता नहीं चल सका। इतना ही नहीं वर्तमान वांधवगढ विधान सभा क्षेत्र के विधायक अपने चुनावी सभा के दौरान हर जगह भाषण देते रहे कि हमारी सरकार आयेगी तो दूध का दूध-पानी का पानी होकर रहेगा, उूध तो कहीं नहीं दिया हां पानी अवश्य हर जगह दिख रहा है। हां इतना बदलाव अवश्य आया कि जो पूर्व की सरकार ने तीन लाख और पांच लाख के तालाब पूरे जिले में बनवाये वो वर्तमान की सरकार में बैठे दिमागदार लोग अपनी अक्ल का उपयोग कर पैटर्न बदल कर चालीस लाख, पचास लाख का काम दूरस्थ अंचलों में करवाने लगे ताकि लोगों की नजर भी न पड़े और बजट का भी बंदरबांट कायदे से हो जाय। जबकि केन्द्र सरकार की मंशा है कि हर ग्रामीण को रोजगार मिले इसी के तहत जिले में काम के बदले अनाज योजना, बैक ग्रान्ट रीजन फंड योजना, राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना जैसी योजनायें समय-समय पर लागू होती गई और हर योजना का लाभ उमरिया जिले को मिलता गया। उसका परिणाम यह रहा कि जिले में गरीब परिवारों की संख्या में दिनों दिन इजाफा होता जा रहा है।
एक ओर तो प्रदेश के मुखिया प्रदेश को देश में अग्रणी बनाने का दावा कर रहे हैं वहीं बीपीएल परिवारों की संख्या बढती जा रही है। अगर जिले और प्रदेश कें बीपीएल परिवारों के आंकड़े देखें तो साफ दिखता है कि प्रदेश उन्नति के जगह अवनति की ओर तेजी से जा रहा है। जिसके जिम्मेदार जिले में बैठे अधिकारी और नौकरशाह हैं। यही कारण है कि जिले की संरक्षण प्राप्त निर्माण एजेंसियां खुले आम सभी नियम कायदों के दरकिनार कर मशीनों से काम करवा रही हैं।
ग्राम खरहाडांड के मामले में जब जिले के कलेक्टर से कार्यस्थल से ही फोन पर बात की गई तो उनका कहना रहा कि अभी मीटिंग में बैठा हूं बाद में बात करेंगे। जब जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी से बात करने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाईल ही कव्हरेज के बाहर रहा। इतने के बाद संभाग के कमिश्नर से बात किया गया तो उनका जबाब मिला कि अभी कोर्ट में हूं बाद में बात करता हूं। वहीं जब जिला पंचायत अध्यक्ष से बात की गई तो उन्होने कहा कि क्या बतायें।
इन सब से साफ जाहिर होता है कि जिले में भ्रष्टाचार की जड़ कितनी गहरी है। और निर्माण एजेंसी कहां तक अपना जाल फैलायीं हैं। ऐसे में प्रदेश के मुखिया और उनके प्रशासनिक अमले के कथनी और करनी का अंतर साफ दिख रहा है। इसीलिये जिले की निर्माण ऐजेंसियां फर्जी एमआईएस डाटा फीडिंग कर प्रदेश में अपनी पीठ थपथपवा लेती है।
No comments:
Post a Comment