छतरपुर (एमपी मिरर)। स्थानीय शहर के गांधी आश्रम में इन दिनों अमेरिकी मूल के पांच विदेशी महात्मा गांधी के स्वाबलंबन में ही सच्चा सुख तलाश रहे हैं। भोगवादी जीवन शैली से दूर होकर यह प्रकृति, संस्कृति और स्वाध्याय के योग से जुड़ रहे हैं। यह विदेशी युवा ऐसे भारतीय लोगों के लिए प्रेरणा और सबक कहे जा सकते हैं जो योगवादी भारतीय संस्कृति को छोड़कर भोगवाद को ही सब-कुछ मानकर उसमें खोते जा रहे हैं।
छतरपुर गांधी आश्रम में इन दिनों स्वचिकित्सा उत्सव चल रहा है। पिछले चार साल से आयोजित होते आ रहे अपनी तरह के इस विशेष आयोजन में शामिल होने एक ओर जहां देश के अनेक प्रांतों के हुनरमंद लोग शामिल होने आते हैं, वहीं पिछले सालों की तरह विदेशी मेहमान भी इस आयोजन में शामिल होते आ रहे हैं। इस बार अमेरिकी और कनाडा मूल के युवा स्व चिकित्सा उत्सव में जिस तरह भारतीय जीवनशैली में खुद को ढालकर आत्मिक शांति और विशेष अनुभूति हासिल कर रहे हैं वह देखने वालों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। यूएसए की सारा और जैक को बर्तन साफ करते देख लोगों को एक बारगी आश्चर्य लगा, लेकिन वे जिस तन्मयता से लगन से अपने काम को कर रहे थे, वह सभी के लिए सबक हो सकता है। कैनेडा की रेहना सौ से दो सौ लोगों के भोजन को बनाने से लेकर परोसने का काम संभालकर स्वाबलंबन के असली पाठ को पढ़ रही हैं।
अमेरिका में शिक्षिका अरोरा लकड़ी ढोकर चूल्हा जलाने और गोबर से कंडा बनाकर प्रकृति के नजदीक जाने की कोशिश में लगी हैं। वहीं पेशे से अमेरिका की फूड इंड्रस्टी में काम करने वाले मैट जैविक खेती के प्रति लगाव रखने के कारण गांधी आश्रम तक खिंचे चले आए। वे यहां जैविक खाद बनाने की विविध तकनीकियों को सीखने के साथ ही खुद गोबर-कचरा ढोकर प्रयोग शाला तक ले जाने का काम संभाले हैं। बर्तन धोने, साफ-सफाई करने में भी इन्हें कोई गुरेज नहीं है। ये युवा भारतीय संस्कृति में भी खूब रुचि ले रहे हैं।
सभी संस्कृतियों का संगम
विदेशी मेहमानों को स्व चिकित्सा उत्सव में भारत की विविध संस्कृतियों का संगम एक ही स्थान पर देखने मिल रहा है। मेक ने बताया कि यहां उन्हें अहमदाबाद के सन योगा गुरू सुमी-चंद्रेश मिले तो वहीं बनारस के देवाशीष कांजीलाल से प्राणिक हीलिंग का हुनर सीखने मिला। सारा और जैक के अनुसार स्वास्थ्य और स्वाद से भरे खाना का जादुई हुनर रखने वाले मनोज प्रजापत उयरपुर, शंकरन कोलकाता से उन्हें पाक कला सीखने मिली।
छतरपुर गांधी आश्रम में इन दिनों स्वचिकित्सा उत्सव चल रहा है। पिछले चार साल से आयोजित होते आ रहे अपनी तरह के इस विशेष आयोजन में शामिल होने एक ओर जहां देश के अनेक प्रांतों के हुनरमंद लोग शामिल होने आते हैं, वहीं पिछले सालों की तरह विदेशी मेहमान भी इस आयोजन में शामिल होते आ रहे हैं। इस बार अमेरिकी और कनाडा मूल के युवा स्व चिकित्सा उत्सव में जिस तरह भारतीय जीवनशैली में खुद को ढालकर आत्मिक शांति और विशेष अनुभूति हासिल कर रहे हैं वह देखने वालों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। यूएसए की सारा और जैक को बर्तन साफ करते देख लोगों को एक बारगी आश्चर्य लगा, लेकिन वे जिस तन्मयता से लगन से अपने काम को कर रहे थे, वह सभी के लिए सबक हो सकता है। कैनेडा की रेहना सौ से दो सौ लोगों के भोजन को बनाने से लेकर परोसने का काम संभालकर स्वाबलंबन के असली पाठ को पढ़ रही हैं।
अमेरिका में शिक्षिका अरोरा लकड़ी ढोकर चूल्हा जलाने और गोबर से कंडा बनाकर प्रकृति के नजदीक जाने की कोशिश में लगी हैं। वहीं पेशे से अमेरिका की फूड इंड्रस्टी में काम करने वाले मैट जैविक खेती के प्रति लगाव रखने के कारण गांधी आश्रम तक खिंचे चले आए। वे यहां जैविक खाद बनाने की विविध तकनीकियों को सीखने के साथ ही खुद गोबर-कचरा ढोकर प्रयोग शाला तक ले जाने का काम संभाले हैं। बर्तन धोने, साफ-सफाई करने में भी इन्हें कोई गुरेज नहीं है। ये युवा भारतीय संस्कृति में भी खूब रुचि ले रहे हैं।
सभी संस्कृतियों का संगम
विदेशी मेहमानों को स्व चिकित्सा उत्सव में भारत की विविध संस्कृतियों का संगम एक ही स्थान पर देखने मिल रहा है। मेक ने बताया कि यहां उन्हें अहमदाबाद के सन योगा गुरू सुमी-चंद्रेश मिले तो वहीं बनारस के देवाशीष कांजीलाल से प्राणिक हीलिंग का हुनर सीखने मिला। सारा और जैक के अनुसार स्वास्थ्य और स्वाद से भरे खाना का जादुई हुनर रखने वाले मनोज प्रजापत उयरपुर, शंकरन कोलकाता से उन्हें पाक कला सीखने मिली।
कनाडा की रेहना और यूएसए की अरेरा का कहना है कि राजस्थान की अनपढ़ और ठेठ ग्रामीण महिला के रूप में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त प्रतापी बाई के आयुर्वेदिक हुनर ने उनमें भारत की समृद्धशाली चिकित्सा के प्रति विश्वास जगाया है। नाड़ी वैद्य लक्ष्मणदास समीरपुर के हाथों का जादू उनके लिए अकल्पनीय था। वैध हरिशंकर राय की एक्यूप्रेशर थैरेपी ने जहां इन्हें प्रभावित किया वहीं सम्राट नासिक, नारायण कसल उड़ीसा, लालजी सिंह पुष्कर, हरिश्चंद्र पुष्पा, दुर्गाप्रसाद आर्य, चक्रवर्ती, नीला, हार्डीकर, रामअवतार सिंह से इन्हें बहुत कुछ सीखने मिला।
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