1453971' type='text/javascript' raj: बेबसी की घुटन में लिपटी अबला बेचारी

Tuesday, March 15, 2011

बेबसी की घुटन में लिपटी अबला बेचारी

यह दर्द भरी दास्तान मानकुंवर सेन 75 वर्ष की है। पेशे से दोना-पत्तल बनाकर गुजर-बसर करते एक किराये के कच्चे मकान में जिंदगी के अपने शेष दिन गुजार रही है। पति रामेश्वर सेन 80 को आंखों से न दिखाई देने पर बड़ी बेटी के यहां रहते आये हैं। मानकुंवर बताती हैं, उसके दो बेटीएक बेटा है। सभी बच्चे वाले हैं मेरा नपं के पीछे स्वयं का मकान था, पर बेटे ने कुछ कर्ज पर पैसे उठाने पर गिरवी रख दिया था। कर्जदार ने मनमाना ब्याज बढ़ाकर बेटे से जबरन रजिस्ट्री कराकर उसे जप्त कर लिया, तभी से हम सभी लोग अलग किराये के मकान में रहते आये हैं। शासन की कल्याणकारी, वृद्धावस्था पेंशन योजनाएं कागजी साबित हो रही हैं।

कर्जदारों से तंग आकर बेटे ने की खुदकुशी
पत्नी के साथ रह रहे बेटे राकेश ने कर्जदारों से परेशान होकर फंासी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। मानकुंवर ने सिसकते हुए बताया कि बुढ़ापे की लाठी का एक मात्र सहारा भी कर्जदारों ने उससे छीन लिया बेवस लाचार असहाय जिंदगी के शेष दिन अकेले गुजारने पड़ रहे हैं। पैरों से चलने में असहाय मानकुंवर लकडिय़ों के सहारे दोनों हाथों में लाठी थाम राशन की दुकान से राशन लेने एक कोस पैदल चलकर थैले में बोझ लिए गिरती पड़ती घर पहुंचती हैं और कण्डे से चूल्हा जलाते जिंदगी का बोझा इस आस के साथ उठा रही हैं कि शेष बची जिंदगी भी ऐसे ही कट जाएगी।

2 comments:

  1. यह एक त्रासदी है की ऐसी कहानियां हमारे समाज में मौजूद हैं.... ना जाने विकास के नाम पर क्या हो रहा है..... ? एक संवेदनशील पोस्ट ...

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  2. ye news aapki samvedana ki prateek hai.thanks.

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