मण्डला (एमपी मिरर)। जिले में फर्नीचर की दुकानों में अवैध लकड़ी से पलंग, सोफा, दीवान, दरवाजे, खिड़कियां आदि धड़ल्ले से बनाई जा रही हैं। फर्नीचर की विभिन्न दुकानों में प्रतिदिन लाखों रुपए की ईमारती लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है, किन्तु वन विभाग का अमला जिले भर में संचालित इन फर्नीचर दुकानों की सुध लेना भूलकर उक्त दुकानों में चोरी की लकडिय़ों को खपाने के लिए अपनी मूक सहमति दे रहा है।
फर्नीचर दुकानों में फर्नीचर बनाने के लिए प्रयुक्त ईमारती लकड़ी कितनी मात्रा में, कितने स्थानों से, किस-किस तारीख में, कब-कब मंगाई गई है वन विभाग के द्वारा उक्ताशय की जांच दुकानों में कभी कभार ही की जाती है, यहीं वजह है कि फर्नीचर की दुकानों में धड़ल्ले से चोरी की ईमारती लकडिय़ों का प्रयोग कर फर्नीचर व अन्य गृह सज्जा उपयोगी साजो सामान तैयार कर बेखौफ बिक्री की जाती है।
दस्तावेजों का संधारण नहीं
फर्नीचर व्यवसाईयों के द्वारा फर्नीचर की दुकान में, फर्नीचर व अन्य लकड़ी निर्मित साजों सामान की क्रय एवं विक्रय संबंधी दस्तावेज नहीं संधारित किये जाते। फर्नीचर के बिक्री में पक्के बिल नहीं काटे जाते और ना ही किसी भी तरह का रजिस्टर अथवा अन्य लिखित दस्तावेज वन विभाग को दिखाने के लिए तैयार किया जाता है।
धंधा कमाई का
फर्नीचर की दुकान का संचालन करना मोटी कमाई का जरिया है। चोरी की लकड़ी से बने विभिन्न प्रकार के साजो सामान न केवल मोटी कमाई दे जाते है, बल्कि लेखा जोखा आदि तैयार करने के झमेले से भी दुकानदार को बचा लेते है।
ट्रांसपोर्टिंग में ग्राहक जवाबदार
चोरी की लकड़ी से निर्मित साजो सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान यदि ले जाना हो तो रास्ते में पडऩे वाले अड़चनों की जिम्मेदारी ग्राहक की होती है, क्योंकि फर्नीचर दुकानदार बिके हुए साजो सामान का पक्का बिल काटकर ग्राहक को नहीं दिया जाता, किसी ग्राहक के द्वारा पक्का बिल मांगने पर उसे सादे कागज में ही बिल बनाकर दे दिया जाता है। जिसमें ना तो दुकान का नाम लिखा होता है और न ही दुकान संचालक का नाम और उसके फर्नीचर व्यवसाय से संबंधित किसी भी प्रकार की कोई जानकारी अंकित नहीं होती है।
चौपट हो रहे जंगल
अवैध लकडिय़ों की खरीद फरोख्त के मुख्य केन्द्र फर्नीचर दुकानों का संचालन जिला के हरे-भरे जंगलों को स्थानीय निर्धन अशिक्षित, मजदूरों के द्वारा चोरी छिपे कटवाकर उस लकड़ी से फर्नीचर व अन्य साजों सामान तैयार कर बिक्री करते हुए मोटी कमाई कर रहे हैं। जंगलों की अवैध कटाई के कारण जिले के हरे भरे वन संकट के दौर से गुजर रहे है। फर्नीचर व्यवसाय की लकड़ी की भूख मिटाने को विवश जिले के वन लकड़ी व्यवसाय के संगठित गिरोह के हाथों धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं।
फर्नीचर दुकानों में फर्नीचर बनाने के लिए प्रयुक्त ईमारती लकड़ी कितनी मात्रा में, कितने स्थानों से, किस-किस तारीख में, कब-कब मंगाई गई है वन विभाग के द्वारा उक्ताशय की जांच दुकानों में कभी कभार ही की जाती है, यहीं वजह है कि फर्नीचर की दुकानों में धड़ल्ले से चोरी की ईमारती लकडिय़ों का प्रयोग कर फर्नीचर व अन्य गृह सज्जा उपयोगी साजो सामान तैयार कर बेखौफ बिक्री की जाती है।
दस्तावेजों का संधारण नहीं
फर्नीचर व्यवसाईयों के द्वारा फर्नीचर की दुकान में, फर्नीचर व अन्य लकड़ी निर्मित साजों सामान की क्रय एवं विक्रय संबंधी दस्तावेज नहीं संधारित किये जाते। फर्नीचर के बिक्री में पक्के बिल नहीं काटे जाते और ना ही किसी भी तरह का रजिस्टर अथवा अन्य लिखित दस्तावेज वन विभाग को दिखाने के लिए तैयार किया जाता है।
धंधा कमाई का
फर्नीचर की दुकान का संचालन करना मोटी कमाई का जरिया है। चोरी की लकड़ी से बने विभिन्न प्रकार के साजो सामान न केवल मोटी कमाई दे जाते है, बल्कि लेखा जोखा आदि तैयार करने के झमेले से भी दुकानदार को बचा लेते है।
ट्रांसपोर्टिंग में ग्राहक जवाबदार
चोरी की लकड़ी से निर्मित साजो सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान यदि ले जाना हो तो रास्ते में पडऩे वाले अड़चनों की जिम्मेदारी ग्राहक की होती है, क्योंकि फर्नीचर दुकानदार बिके हुए साजो सामान का पक्का बिल काटकर ग्राहक को नहीं दिया जाता, किसी ग्राहक के द्वारा पक्का बिल मांगने पर उसे सादे कागज में ही बिल बनाकर दे दिया जाता है। जिसमें ना तो दुकान का नाम लिखा होता है और न ही दुकान संचालक का नाम और उसके फर्नीचर व्यवसाय से संबंधित किसी भी प्रकार की कोई जानकारी अंकित नहीं होती है।
चौपट हो रहे जंगल
अवैध लकडिय़ों की खरीद फरोख्त के मुख्य केन्द्र फर्नीचर दुकानों का संचालन जिला के हरे-भरे जंगलों को स्थानीय निर्धन अशिक्षित, मजदूरों के द्वारा चोरी छिपे कटवाकर उस लकड़ी से फर्नीचर व अन्य साजों सामान तैयार कर बिक्री करते हुए मोटी कमाई कर रहे हैं। जंगलों की अवैध कटाई के कारण जिले के हरे भरे वन संकट के दौर से गुजर रहे है। फर्नीचर व्यवसाय की लकड़ी की भूख मिटाने को विवश जिले के वन लकड़ी व्यवसाय के संगठित गिरोह के हाथों धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं।
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