
हरे जंगलों और पहांडों से घिरा भोपाल शहर खूबसूरत शहरों में से एक है। यहां की बंडी झील, ताजूल मस्जिद, भारत भवन, पर्दा, नामर्दा, जर्दा, बतौलेबाजी और तांगा इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते है। यहां की शाम और उर्दू जुबान भोपालवासियों सहित देश-विदेश से आने वाले सभी लोगों को काफी रास आता है, इसकी खूबसूरत शाम और शांत वातावरण यहां आने वाले प्रत्येक पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित तो करती ही है, उसे अपनी दामन फैलाकर स्वागत करने के लिए भी तैयार रहती है। इसी वजह से अब भोपाल नगरी माया नगरी मुंबई(बालीवुड) के रहवासियों को भी अपनी ओर खींच रही है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यहां हो रही फिल्मों की शूटिंग है।
ऐसे में तो भोपाल नगरी राजा भोजपाल के समय से ही अपनी स्वच्छ और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण लोगों के दिलों में बसी हुई है, इन्हीं के नाम पर ही भोपाल शहर का नाम रखा गया। राजा भोजपाल ही भोजपुर के पास भीमकुण्ड तालाब बनवाया जो आज भी है। इतना ही नहीं शहर का बंडा तालाब को बनवाने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है, जिसे भोपाल की जीवनरेखा कहा जाता है। आज इस झील(तालाब) में पानी कम हो गया है, या यूं कहें कि वह सूख सी गई है, और यही कारण है कि यह चिंता का विषय बनती जा रही है। कभी यह झील शहरवासियों सहित यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी सौंदर्य शक्ति का अहसास कराती हैलेकिन अब सच कहें तो लगता जैसे कोई विधवा अपने सौंदर्य को खोकर चिंताओं की चिता पर बैठी हो।
जिस झील के किनारे सैकंडों पर्यटकों और प्रेमी बैठकर इसकी खूबसूरत फिंजा को देखते थे वहीं आज यह बिरान सी लगने लगी है। ऐसे ही भोपाल की उर्दू, फारसी और अरबी जुबान भी अपनी विशेष पहचान रखती है। लेकिन अब वह भी भगवान भरोसे हो गई है। एक समय था, जब यहां वॉल्टर और फ्लोरा सारकस नाम की शायर रहा करते थे। असद भोपाली और कैफे भोपाली फिल्मी गीतकारों की हैसियत से भोपाल नगरी की पहचान बंढाए थे।
कभी भोपाल क्षेत्र और उर्दू साहित्य का केंद्र भी रहा हैं। उर्दू साहित्य से संबंधित यहां बंडे-बंडे संस्थान अब भी कायम है, जहां भोपालवासियों सहित देश-विदेश से आने वाले छात्रों को उर्दू की शिक्षा देती है।वहीं उर्दू, फारसी और अरबी जुबान को बंढावा देने के लिए शहर के हमिदिया सैफिया कॉलेज जैसी बंडी संस्थान में जहां प्रत्येक साल उर्दू जुबान पर संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है।
उर्दू जुबान के नाम से जाने जाने वाली इस शहर में कई सांस्कृतिक कला केंद्र और हिन्दी साहित्य अकादमी है, जो भोपाल की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। मध्यभारत में बसी इस नगरी में पूरे भारतवर्ष के सांस्कृतिक, पारंपरिक और साहित्य की मिलीजुली सौंधी खुशबू की महक भी आती है। यहां के लोग सभी रायों की मिलीजुली सांस्कृतिक, पारंपरिक रीति-रिवाजों और कलाओं के समिश्रण का आनंद लेते हैं। इतना ही नहीं बंडी झील के किनारे स्थापित भारत भवन देश भर के नामचीन कलाकारों को अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने का मौका देता है। सांस्कृतिक, पारंपरिक और साहित्यिक कलाओं का केंद्र माने जाने वाली इस भवन में देश-विदेश के नाटकों का रंगमंचन शहरवासियों को खूब लुभाती है तथा अपनी कलाओं की महक -गमक से सराबोर कर देती है। इतना ही नहीं यहां स्थित रविन्द्र भवन, हिन्दी भवन, मानस भवन भी शहर के लोगों को अपनी खूबसूरती का अहसास दिलाती है।
वहीं आज भोपाल की उर्दू, फारसी और अरबी जुबान की बदौलत बतौलेबाजी और यहां की मिलीजुली जुबान तेजी से बंढ रही है। वर्तमान में तो भोपाल का हर शख्स इस जुबान को अपनी पहचान बतलाता है। पुराने शहर से लेकर न्यू मार्केट, एमपी नगर यहां तक की सिटी बसों, बाजारों और रेलवे स्टेशन पर भी धंडल्ले से भोपाली जुबान सुनने को मिल जाती है। ''हम केते हैं कि भोपाल की पेचान है यहां का बंडा ताल कसम से तुमाये सर की कसम खां की केता हूं, तुमाये यहां ऐसा तालाब नहीं है।'' इस शहर में ऐसे नये शब्द नये तुकदार मुहावरे और स्थानीय बोली लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है, जो इस शहर की महक-गमक और सांस्कृतिक पहचान को अद्वितीयता प्रदान करती है। इतना ही नहीं यहां की आधी अभिव्यक्ति तो गालियों के रचनात्मक और प्रयोगात्मक इस्तेमाल से ही हुआ करती है।
भोपाल के लोग किसी को बिना चोट पहुंचाये ऐसी गालियां देंगे जिसमें मॉ-मईयो, भेन-बहिन सबको गाली दे देंगे। जिसमें गाली का संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया सब समाहित हो जाती है। भोपाल के बदलते परिह्श्य में यहां कई रायों की बोलियों का मिलीजुली बोली सुनने को मिलती है। यहां पहले पुराने शहर को उर्दू जुबान के लिए जाना जाता है। वहीं नया भोेपाल में अब भोजपुरी, बघेली, मराठी, मलयाली और बुंदेली जैसी कई बोलियां सुनने को मिल जाती है, जो इस शहर को एक अलग पहचान दिलाती है। इसी परिप्रेक्ष्य में कहा जाये तो आज भोपाल नगरी को आधुनिक बनाने का काम बीते दस सालों से लगातार किया जा रहा है, लेकिन शहर में बंढती आबादी और बेतरतीब आधारभूत संरचना भोपाल की खूबसूरती को खतरे मे डाल दिया है। जहां एक ओर इसे खूबसूरत बनाने के लिए करोंडों रूपए खर्च किए जा रहे हैं।
ताकि यह शहर अपनी वास्तविकता को बनाए रखे, ये हमारी भूल का खामियाजा है कि आए दिन भोपाल के चारों ओर इस कदर गंदगी फैलती जा रही है, जो यहां आने वाले राहगीरों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। यदि हम भोपालवासी इस शहर की खूबसूरती को इसी तरह मिटाते गए तो आने वाले दिनों में भोपाल शहर की वजूद ही खत्म हो जायेगा। आखिर इसे सहेजने और सवांरने का काम तो हमें ही करना है।
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