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Saturday, March 13, 2010

देश में ढीला होता सुरक्षा तंत्र

मनोहर पाल
देश में दिल दहला देने वाली घटनाएं होती रही हैं और अब भी कई ब$डे सुनियोजित हादसे और घटनाएं हो रही हैं। वहीं इनमें तेजी से इजाफा भी हो रहा है, लेकिन देश का सुरक्षा तंत्र ढीला होता जा रहा है, जिससे अपराधियों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। यही वजह है कि वे बेफिक्र हो कहीं भी धमाका कर देते हैं, जिनमें सैक$डों निर्दोषों की जान चली जाती है और करो$डों-अरबों की संपत्ति नष्ट हो जाती है, जबकि सुरक्षा तंत्र इनकी खोज-खबर लेने में ही जुटा रहता है और अंत होता वही है 'ढाक के तीन पातÓ। सुरक्षा दल अपनी नाकामी साबित करता रहता है और आतंकवादी फिर से धमाका कर पहली घटना का ध्यान बांटकर दूसरी घटना की ओर खींच लेते हैं, जबकि पहली घटना का मामला लगभग शांत होने की कगार पर आ जाता है।
यदि शासन-प्रशासन इन घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधियों को पक$ड लेता है तो अपनी गाही-बगाही में लगा रहता है, लेकिन इन्हें सजा देने में और निर्दोषों को न्याय दिलाने में वर्षों लगा देता है।
इतना ही नहीं इन आतंकियों की सुरक्षा और खाने-पीने पर लाखों-करो$डों रुपए यूं ही फूंक दिए जाते हैं, लेकिन कई वर्ष बीत जाने के बाद भी नतीजा शून्य रहता है तो ऐसा क्या कारण है कि सब कुछ स्पष्ट होने के बावजूद भी इस पर कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया जाता है, जबकि ये आतंकवादी जेलों में ऐश की जिंदगी फरमाते हैं, जिसके वे कतई हकदार नहीं होते हैं।इसके यदि दूसरे पहलू को देखा जाए तो देश में हर वर्ष लाखों लोग सिर्फ भुखमरी से ही काल के गाल में समा जाते हैं, लेकिन सरकारें इस ओर कोई ध्यान नहीं देती हैं और कोरी घोषणाएं करती रहती हैं।
इतना ही नहीं कई आतंकी घटनाओं में मारे जाने वाले निर्दोष लोगों के परिजनों को सिर्फ मुट्ठीभर सहायता राशि देकर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छो$ड दिया जाता है। न तो इन निर्दोषों को न्याय मिल पाता है और न हीं आतंकवादियों को कोई सजा दी जाती है, बल्कि उनकी इस तरह से देखभाल की जाती है मानो उन्हें किसी म्यूजियम में जीवित ही रखा जाना हो और जनता आकर उनके दर्शन कर सिर्फ यही कहे कि ये वही आतंकवादी है, जिसने फलां जगह विस्फोट किया था, जिसमें इतने लोग मारे गए थे। जब हम मुंबई में हुए २६/११ और संसद जैसे हमलों को याद करते हैं तो हमारी रूह कांप उठती है। मुंबई पर हुए २६/११ के हमलों में कई निर्दोषों को अपनी जान गंवानी प$डी, हजारों लोग बेसहारा हो गए और करो$डों-अरबों की संपत्ति नष्ट हो गई तथा कई परिवार उज$ड गए। वहीं दूसरी ओर आतंकवादियों ने देश की सुरक्षा में सेंध लगाते हुए संसद पर हमला कर दिया था, जिसमें कई सुरक्षाकर्मी मारे गए। हालांकि पुलिस ने इन दोनों आतंकी घटनाओं में एक-एक मुख्य आतंकवादियों को गिरफ्तार किया, जो सलाखों के पीछे हैं, लेकिन अब तक कोई उचित निर्णय नहीं लिए गए तो ऐसे में अब सरकार को किस बात का इंतजार है। ये घटनाएं तो सिर्फ बानगीभर है और भी कई धमाके होते रहे हैं, जिनमें हजारों निर्दोष अपनी जान गंवाते रहे हैं।
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधियों को सजा क्यों नहीं दी जाती है, जबकि इसके पुख्ता प्रमाण होते हैं। क्या सिर्फ गरीबों पर ही कानून लागू होता है, जिनहें बेवजह सजा दी जाती है। आतंकियों को सजा नहीं दिए जाने से उनके व अन्य आतंकी संगठनों के हौंसले बुलंद हो जाते हैं और अन्य किसी घटनाओं को अंजाम देने की फिराक में लगे रहते हैं।

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